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इशक़ इलाही पर उर्दू ग़ज़ल

तिरे जमाल की ताबानियों से रोशन हो हमारे दिल पे जो पर्दा दबीज़ है कोई दिवाना वार पुकारे है जो तुझे शब-ओ-रोज़ शकीब नाम का इक बदतमीज़ है कोई

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